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Poem On Saas Bahu

Fri April 27, 2018 by Kunal Bansal
po2761
रिश्ता ऐसा सास बहू का,जैसे कढ़ी पकौड़े वाली।

ये कहती मैं पात पात हूँ,वह कहती मैं डाली डाली।।

रिश्ता ऐसा सास बहू का,जैसे कोई चटपटी चाट।

चटकारा जब तक ना लागे,मन को ये आये न रास।।

रिश्ता ऐसा सास बहू का,ज्यौ भरी अमिया की डाली।

कच्ची हो तो खट्टी लगती,पक जाए तो मीठी वाली।।

रिश्ता ऐसा सास बहू का,जैसे हो दही और भल्ला।

ऊचँ नीच जब घर में होवे,और जगत में होवे हल्ला।।

रिश्ता ऐसा सास बहू का,जैसे चटपटा पानी पताशा।

गिटपिट गिटपिट दिन भर होवे,हर दिन लागे नया तमाशा।।

रिश्ता ऐसा सास बहू का,ज्यौं रायता बूंदी वाला।

ननदियां चखने को आई,बर्तन थोड़ा डोल गया;और रायता फैल गया।
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category: Theme Poetry
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